ख़याल-ए-पुरसिश-ए-फ़र्दा से घबराना नहीं आता गुनह करता हूँ लेकिन मुझ को पछताना नहीं आता यक़ीन-ए-दा'वा-ए-उल्फ़त नहीं माना नहीं आता मगर ये भी तो है झूटों को झुटलाना नहीं आता तबीअ'त है ग़यूर ऐसी कि तिश्ना-काम रहता हूँ लगी-लिपटी किसी की सुन के पी जाना नहीं आता मिरी नाकामियाँ दिल का चमन शादाब रखती हैं ये वो कलियाँ हैं जिन को खिल के मुरझाना नहीं आता किसी के वादा-ए-बातिल से तस्कीं हो नहीं सकती खिलौने दे के मुझ को दिल का बहलाना नहीं आता वफ़ा की दास्ताँ दुनिया में 'कैफ़ी' कब नहीं छिड़ती ज़बान-ए-ख़ल्क़ पर कब मेरा अफ़्साना नहीं आता