शिकन-अंदर-शिकन याद आ गया है विसाल-ए-तिश्ना-तन याद आ गया है ये दश्त-ए-आरज़ू की बे-पनाही घने सपनों का बन याद आ गया है मिरे रस्ते में चट्टानें बहुत हैं मुझे अब कोहकन याद आ गया है चराग़-ए-उर्यां तन को भी बिल-आख़िर हवा का पैरहन याद आ गया है बरसती जा रहीं बे-तहाशा इन आँखों को वतन याद आ गया है ये कैसा ख़्वाब है आँखों में 'बुशरा' ये क्या दीवाना-पन याद आ गया है