खेल कर सिलसिला-ए-गर्दिश-ए-अय्याम के साथ ज़िंदगी हम ने गुज़ारी बड़े आराम के साथ सुन रहा हूँ दिल-ए-बर्बाद के अफ़्साने में आप का नाम भी आया है मिरे नाम के साथ शुक्र-सद-शुक्र कि मुद्दत पे तुझे शिकवा-तराज़ याद तो आया कोई सैकड़ों इल्ज़ाम के साथ कम-निगाही से तिरी बज़्म-ए-तरब में साक़ी देख आँखें न छलक जाएँ कहीं जाम के साथ तेरी यादों में गुज़रते हुए लम्हों की थकन लुत्फ़-ए-आग़ाज़ भी लाई ग़म-ए-अंजाम के साथ बढ़ता जाता है उजालों पे अँधेरों का असर सुब्ह बदनाम न हो जाए कहीं शाम के साथ इस ज़माने में गले मिलते हुए देखा है रविश-ए-ख़ास को हम ने रविश-ए-आम के साथ हम भी खेले हैं लब-ए-शाहिद-ए-मय से 'अह्मर' जुरआ-कश हम भी रहे हैं कभी 'ख़य्याम' के साथ