खिड़की से ज़रा झाँक ले इक बार मेरे यार है कौन तिरे दर पे तलबगार मेरे यार इक गीत सर-ए-शाम लता जी की शरण में और उस पे तिरे पाँव की झंकार मेरे यार होंटों से गवारा नहीं आँखों से लगा ले है ज़ेहनी कशाकश में तेरा यार मेरे यार इक शाम ज़रा भर किसी दरवेश की झोली ये भी हैं तिरी ज़ुल्फ़ के हक़दार मेरे यार मुमकिन नहीं बन जाऊँ किसी दर का सवाली रहता है नजफ़ में मिरा सरदार मेरे यार सब लाश मिरी क़ब्र में रखने पे तुले हैं बस एक सदा थी कि मेरे यार मेरे यार मिलती न हो रोटी जिसे दो वक़्त की 'साजिद' वो कैसे करे इश्क़ पे गुफ़्तार मिरे यार