खिड़कियाँ सूनी दर-ओ-दीवार चुप सारी गलियाँ और भरे बाज़ार चुप किस क़यामत की ख़बर आने को है गाँव के चौपाल चुप अख़बार चुप दरमियाँ है ख़ौफ़ का दरिया रवाँ मैं यहाँ ख़ामोश वो उस पार चुप इक सदा उस को बुलाने के लिए इक सदा आए मुझे हर बार चुप कैसा क़हत-ए-आदमियत है यहाँ ज़िंदगानी के सभी आसार चुप किस क़यामत का है ये तन्हा सफ़र रास्ते चुप राह के अश्जार चुप मैं ने तो इंसाफ़ माँगा था मगर आज है 'औसाफ़' हर दरबार चुप