ख़िरद का नूर बसीरत की रौशनी ले कर जबीन-ए-शौक़ झुके ज़ौक़-ए-बंदगी ले कर रह-ए-हयात की ज़ुल्मत है दो घड़ी के लिए वो आ रहे हैं मोहब्बत की रौशनी ले कर दिमाग़-ओ-दिल में अभी आप के अंधेरा है क़दम बढ़ाइए कुछ हम से रौशनी ले कर दिलों का बुग़्ज़ छुपाए से छुप नहीं सकता न आओ सामने पैग़ाम-ए-आश्ती ले कर ख़िज़ाँ-रसीदा गुलिस्ताँ में दिल नहीं लगता अब आ भी जाओ बहारों की ताज़गी ले कर हर एक सम्त हैं बिखरे हुए कई चेहरे वुफ़ूर-ए-दर्द में डूबी हुई हँसी ले कर उसे भी हम क़द-ओ-क़ामत से जान लेते हैं फिरे है चेहरे पे चेहरा जो आदमी ले कर तुम्हारी तरह से नाज़ुक-मिज़ाज हम भी हैं बढ़ाओ जाम न तेवर में बरहमी ले कर ये बौने नाप रहे हैं हर एक के क़द को दिल-ओ-दिमाग़ में सौदा-ए-ख़ुद-सरी ले कर ऐ 'सोज़' भूलेंगे कैसे सुख़न-शनास उन्हें गुज़र गए जो बहार-ए-सुख़न-वरी ले कर