ख़्वाब को नींद की सरहद पे रखा जाता है तब कहीं जा के तिरा वस्ल बुना जाता है दिल उतर जाता है नज़रों से सर-ए-शाम कहीं फिर उदासी को ख़यालों में भरा जाता है कैनवस दर्द से हो जाता है छलनी-छलनी जब तिरे हिज्र को तस्वीर किया जाता है एक वीरानी सी उग पड़ती है मेरे अंदर एक ला-शक्ल को इम्कान दिया जाता है मुत्तसिल होगा भला कैसे तिरे दुख से ख़ला कब किसी कर्ब को वहशत से सिया जाता है लोग आएँगे दुआ लेने लहद पर 'हारिस' मैं बता जाऊँगा यूँ इश्क़ किया जाता है