लब-ए-ख़मोश से उस ने ख़ुश-आमदीद कहा उसी को लोगों ने फिर गुफ़्त और शुनीद कहा बहार-ए-लाला-ओ-गुल से ख़िज़ाँ की आहट तक हर एक वाक़िआ' मौसम ने चश्म-दीद कहा जुनूँ में पहले तो इक़रार कर लिया उस ने जुनूँ की बात को फिर अक़्ल से बईद कहा हसीन तब्सिरा मौसम पे जब तमाम हुआ तो उस ने कान में चुपके से कुछ मज़ीद कहा तिरा ख़याल किया हम ने वस्ल से ता'बीर तिरी गली से गुज़रने को बाज़दीद कहा न हम से पूछा गया ज़ब्त का सबब कोई न हम ने दर्द को अपने कभी शदीद कहा मिरी सरिश्त-ए-'सुख़न' में हैं कुछ नए उस्लूब नई ग़ज़ल ने मुझे भी ख़ुश-आमदीद कहा