ख़ूब है ख़ूब उड़ा ऐ शब-ए-फ़ुर्क़त के मज़े लुत्फ़ हर-हाल में देते हैं मोहब्बत के मज़े ग़ैर क्या जाने भला ऐश के इशरत के मज़े हाँ मुसीबत से हुआ करते हैं राहत के मज़े ऐश करते हैं जुदाई में भी हिज्राँ-दीदा रात-दिन लूटते हैं आप की हसरत के मज़े आप क्या पूछते हैं हाल-ए-दिल-ए-ज़ार मिरा तल्ख़ करते हैं शिकायत को मुरव्वत के मज़े जम्अ रखता हूँ हज़ारों दिरम-ए-दाग़-ए-जिगर ये बदौलत तिरी ग़ुर्बत में हैं दौलत के मज़े ऐश-ओ-आराम-तलब लोग इन्हें क्या जानें हम से पूछे कोई आफ़त के मुसीबत के मज़े मुँह से इंकार है आँखों से है इक़रार-ए-विसाल दिल से पूछें तिरी शोख़ी-ओ-शरारत के मज़े या शब-ए-वस्ल में लूटे हैं मज़े ख़जलत के या मिले 'लुत्फ' को दीदार में ग़ैरत के मज़े