ख़ुदा के वास्ते अब बे-रुख़ी से काम न ले तड़प के फिर कोई दामन को तेरे थाम न ले बस एक सज्दा-ए-शुकराना पा-ए-साक़ी पर ये मै-कदा है यहाँ पर ख़ुदा का नाम न ले वफ़ा तो कैसी जफ़ा भी नहीं है अब हम पर अब इतना सख़्त मोहब्बत से इंतिक़ाम न ले ज़माने-भर में हैं चर्चे मिरी तबाही के मैं डर रहा हूँ कहीं कोई तेरा नाम न ले मिटा दो शौक़ से मुझ को मगर कहीं तुम से ज़माना मेरी तबाही का इंतिक़ाम न ले मैं जानूँ जब कि बुझा दे तू तिश्नगी दिल की वगर्ना आज से दरिया-दिली का नाम न ले नहीं वो हुस्न जो आशिक़ को शाद-काम करे नहीं वो इश्क़ जो नाकामियों से काम न ले रखूँ उमीद-ए-करम उस से अब मैं क्या 'साहिर' कि जब नज़र से भी ज़ालिम मिरा सलाम न ले