मैं ने पाई नहीं जीने की सज़ा कौन से दिन मुझ को आया नहीं मरने का मज़ा कौन से दिन रास आई मुझे फ़ुर्क़त की हवा कौन से दिन मैं ने माँगी नहीं मरने की दु'आ कौन से दिन कब हरी होगी तमन्नाओं की खेती या-रब छाएगी झूम के रहमत की घटा कौन से दिन है यही वक़्त करम का कि हूँ ख़ुद से बेज़ार काम आएगी तिरी शान-ए-अता कौन से दिन किस लिए तोड़ दिया आसरा तुम ने दिल का मैं ने चाहा था वफ़ाओं का सिला कौन से दिन आएँगे जब मिरे पहलू में वो शरमाए हुए वो घड़ी आएगी ऐ मेरे ख़ुदा कौन से दिन मैं तो तय्यार हूँ मिटने को तुम आवाज़ तो दो आज़माओगे तुम अब मेरी वफ़ा कौन से दिन मुझ को खिचवाएगी कब दार पे वहशत 'साहिर' पाऊँगा अपनी मोहब्बत का सिला कौन से दिन