ख़ुदा तौफ़ीक़ दे मुझ से कुछ ऐसा काम हो जाए कि तेरे नेक बंदों में मिरा भी नाम हो जाए जो तेरा हो गया उस की लगेगी क्या कोई क़ीमत नज़र जिस पर पड़े तेरी वही बे-दाम हो जाए मिरे मौला मिरे हक़ में कोई ऐसा करिश्मा कर सज़ा जो भी मिले मुझ को वही इनआ'म हो जाए ख़ुदा ने तेरे हाथों में अजब तासीर बख़्शी है अगर तू ज़हर भी छू ले तो वो भी जाम हो जाए कोई चक्कर चला ऐसा कोई तदबीर ऐसी कर नक़ाब उठने न पाए और जल्वा आम हो जाए दबे वो राज़ हैं दिल में ज़माने के ख़ुदाओं के अगर लब खोल दूँ अपने तो क़त्ल-ए-आम हो जाए तिरे पहलू में मेरे रात-दिन करवट बदलते हैं तिरे पहलू में ही मेरी सहर से शाम हो जाए अगर पर्दा हटा ले तू जमाल-ओ-हुस्न के मालिक मरीज़-ए-इश्क़ को तेरे ज़रा आराम हो जाए मुझे तो तेरे सज्दे में ही अपना सर झुकाना है बला से फिर जो होना हो 'किरन' अंजाम हो जाए