किसी की सम्त जब पत्थर उछालें तो पहले अपने सर को भी बचा लें बहुत आसाँ है औरों को परखना कभी ख़ुद को भी थोड़ा आज़मा लें मोहब्बत से मसाइल हल हुए हैं दिलों से आप नफ़रत को निकालें किसी के होंट पर रख दें तबस्सुम किसी के पाँव का काँटा निकालें हर इक रिश्ता यहाँ पर क़ीमती है ख़फ़ा हैं जो उन्हें चल कर मना लें कोई अपना मिले गर राह में तो न उस को देख कर दामन बचा लें भुला बैठे हैं इक अर्से से जिन को किसी दिन चाय पर उन को बुला लें समझना एक दूजे को कठिन पर जहाँ तक निभ सकें रिश्ता निभा लें न पछताना पड़े अपने किए पर समझ कर सोच कर हर फ़ैसला लें दुआ ले कर किसी मजबूर दिल की चलो हम भी 'किरन' नेकी कमा लें