ख़ून-ए-दिल है शराब के मानिंद और जिगर है कबाब के मानिंद साक़ी ये भी है तेरा फ़ैज़-ए-आम पीते हैं मय जो आब के मानिंद मय-ए-गुलगूँ को साक़ी-ए-गुलफ़ाम पीते हैं हम गुलाब के मानिंद बर्ग-ए-गुल लब दहन गुल-ए-सौसन गाल हैं बस गुलाब के मानिंद हिज्र-ए-साक़ी में ख़ून-ए-दिल अपना पीते हैं हम शराब के मानिंद हैं बरसने में वक़्त-ए-गिर्या मिरे दीदा-ए-तर सहाब के मानिंद ये बहार और ये चमन बुलबुल होंगे इक रोज़ ख़्वाब के मानिंद बे-दिलाराम राहत-ओ-आराम हो गए हैं अज़ाब के मानिंद कोई शय तिश्ना-ए-शहादत को नहीं 'ख़ंजर' की आब के मानिंद