ख़ुश नहीं दर्द से जो इश्क़ का दावा न करे होश खोने हों तो जल्वों का तक़ाज़ा न करे आतिश-ए-शौक़ नहीं आतिश-ए-नमरूद से कम आग का डर हो तो बुत-ख़ाने पे धावा न करे एक आवाज़ से खुल जाता है सब ढोल का पोल दौलत-ए-इश्क़ मयस्सर हो तो ग़ौग़ा न करे रिंद वो मोतकिफ़-ए-का'बा-ए-हस्ती है कि जो ज़ाएर-ए-दैर न हो अज़्म-ए-कलीसा न करे हुस्न वो हुस्न है जो इश्क़ की रमज़ें समझे इश्क़ वो इश्क़ है जो हुस्न को रुस्वा न करे ग़म जिसे कहते हैं वो ख़ून-ए-तमन्ना ही तो है इस से बचना हो किसी को तो तमन्ना न करे हम तो कहते ही रहेंगे दिल-ए-मुर्दा से 'अमीं' ख़ुद अगर जी न सके मिन्नत-ए-ईसा न करे