मदार-ए-ज़ात से आगे कभी नहीं गया था मैं काएनात से आगे कभी नहीं गया था तुम्हारी ज़ुल्फ़ ने उस को हिला के रख दिया है जो शख़्स रात से आगे कभी नहीं गया था तग़य्युरात की मंतिक़ उदास है लेकिन मैं तुझ सबात से आगे कभी नहीं गया था हुसैनी प्यास को चक्खा तो हद से पार हुआ सुख़न फ़ुरात से आगे कभी नहीं गया था हसीन लम्स ने ज़ंजीर खींच रक्खी थी मैं तेरे हाथ से आगे कभी नहीं गया था