ख़्वाब में वो मिरे आग़ोश में आ जाता है मेरी सोती हुई तक़दीर जगा जाता है गुल-ओ-शबनम का ये होता है चमन में अंजाम हँस के कोई तो कोई रो के चला जाता है जोश पर फ़स्ल-ए-बहारी है चमन में सय्याद अब क़फ़स में तो नहीं हम से रहा जाता है मिट गया हूँ वो सितम से नहीं ग़ाफ़िल फिर भी मेरी तुर्बत का निशाँ आ के मिटा जाता है जल के परवाना हुआ ख़ाक तो उस के ग़म में मुँह धुआँ शम्अ का महफ़िल में हुआ जाता है आप ने बैठ के बालीं पे जिसे देखा था आज दुनिया से वो बीमार उठा जाता है अपने अंदाज़ पे ऐसा न हो आशिक़ हो जाए आइना-ख़ाने में वो महव-ए-अदा जाता है याद करता नहीं भूले से वो तुझ को 'नौशाद' हाए तू जिस की मोहब्बत में मिटा जाता है