ख़्वाहान-ए-काम-ए-जाँ हैं तन-आसानियों में हम ता-ज़िंदगी रहेंगे परेशानियों में हम मस्जिद में सज्दा ख़ाक करें देखते हैं हम संदल सनम-परस्तों की पेशानियों में हम देखा कभी न ख़ार की दामन-कशी का लुत्फ़ सहरा की सैर को गए उर्यानियों में हम दो क़िस्म आदमी हैं जफ़ाकार-ओ-बेवफ़ा गर अव्वलों में वो है तो हैं सानियों में हम आब-ए-बक़ा ख़िज़र को मुबारक रहे हमें काफ़ी है जाम-ए-ज़हर कि हैं फ़ानियों में हम जंग-ओ-जदल रहेगी 'शहीदी' तमाम उम्र ईरानियों में यार हैं तूरानियों में हम