किस झुटपुटे के रंग उजालों में आ गए टुकड़े शफ़क़ के धूप से गालों में आ गए अफ़्सुर्दगी की लय भी तिरे क़हक़हों में थी पतझड़ के सुर बहार के झालों में आ गए उड़ कर कहाँ कहाँ से परिंदों के क़ाफ़िले नादीदा पानियों के ख़यालों में आ गए हुस्न-ए-तमाम थे तो कोई देखता न था तुम दर्द बन के देखने वालों में आ गए काँटे समझ के घास पे चलता रहा हूँ मैं क़तरे तमाम ओस के छालों में आ गए कुछ रत-जगे थे जिन की ज़रूरत नहीं रही कुछ ख़्वाब थे जो मेरे ख़यालों में आ गए