किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है क्यूँ लब पे मिरे ज़मज़मा-ए-सल्ल-ए-अला है किस दर की गदाई मिरी क़िस्मत में है या रब सर पर जो मिरे साया-फ़गन बाल-ए-हुमा है सीने में मिरे दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-नबी है इक गौहर-ए-नायाब मिरे हाथ लगा है सरगर्म है दिल शाफ़ा-ए-महशर की तलब में काफ़िर हूँ अगर कुछ भी ग़म-ए-रोज़-ए-जज़ा है गुस्ताख़ तिरी मदह-सराई में है 'वहशत' क्यूँकर न हो तेरे ही तो कूचे का गदा है