किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया By Ghazal << क्या सताते हो रहो बंदा-नव... रात की नींदें तो पहले ही ... >> किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया शाम को बिस्तर सा खोला सुब्ह को तह कर गया वक़्त-ए-रुख़्सत था हमारे बाहर अंदर इतना शोर कुछ कहा था उस ने लेकिन जाने क्या कह कर गया Share on: