किसे ख़बर है कि किस अदा पर चला गया है ये दिल कि हैरत की इंतिहा पर चला गया है चराग़ अंदर की साज़िशों से बुझे हुए हैं और इस का इल्ज़ाम भी हवा पर चला गया है कभी तो ज़ेहनों पे ज़ोर देना कि वक़्त अच्छा हमारे जीवन से किस बिना पर चला गया है मैं अपने हक़ में दलील कोई भी दे न पाया मु’आमला अब मिरा ख़ुदा पर चला गया है तिरे बुज़ुर्गों में कोई अहल-ए-सुख़न नहीं था 'मुनीर' तू किस सुख़न-अदा पर चला गया है