सोज़ भी साज़ भी हर नग़्मा-सराई तेरी ज़र्रे ज़र्रे पे जहाँ के है ख़ुदाई तेरी मेरा एहसास तो छू भी न सका अक्स तिरा मैं ने लफ़्ज़ों से ही तस्वीर बनाई तेरी रौशनी तेरी ही रहती है नबर्द-ए-बीना दी है कानों को भी आवाज़ सुनाई तेरी होंट मिलते हैं तो बस तेरी इनायत के सबब कैसे अल्फ़ाज़ करें शुक्र-अदाई तेरी मेरी तंगी मिरी आसूदगी सब तेरी अता मुझ को मख़्लूक़ में हासिल है गदाई तेरी उस के क़दमों से लिपट जाती है मंज़िल आकर जिस को मिल जाए अगर राहनुमाई तेरी इक तरफ़ मेरी दुआ एक तरफ़ बाब-ए-'असर' दोनों देते रहे होंटों से दुहाई तेरी