किसी के दिल में सोज़िश हो रही है अगर मेरी सताइश हो रही है कोई मेरे लिए महव-ए-दुआ है कहीं साज़िश पे साज़िश हो रही है हमीं पर क्यों ज़माने-भर की आख़िर हर इक जानिब से बंदिश हो रही है मिरे अहबाब पर्दा डालते हैं बराबर मुझ से लग़्ज़िश हो रही है अभी तो इश्क़ की ये इब्तिदा है तिरी आँखों से बारिश हो रही है किसी की याद में जागी हुई हैं मिरी आँखों में सोज़िश हो रही है लबों पर बात दिल की आ न पाई निगाहों से गुज़ारिश हो रही है तअ'फ़्फ़ुन देख कर शहरों का 'अजमल' बयाबानी की ख़्वाहिश हो रही है