मेरा हो कर भी मुझ से बरहम है दिल का आलम अजीब आलम है आप ने ज़ुल्म अता किए मुझ को आप का ये करम भी क्या कम है दिल पे जिस दिन से साया-ए-ग़म है धड़कनों की सदा भी मद्धम है जिन में आँसू कभी न आए थे आज वो आँख भी तो पुर-नम है हर तरफ़ है ग़मों का सन्नाटा हर तरफ़ ज़िंदगी का मातम है ज़िंदगी की मसर्रतें क़ुर्बां कितना पुर-लुत्फ़ दर्द-ए-पैहम है तेरा 'राही' है मुंतज़िर आ जा किस क़दर ख़ुश-गवार मौसम है