किसी की किसी को मोहब्बत नहीं है अभी इस की दुनिया को लज़्ज़त नहीं है अगर तुम को मिलने की फ़ुर्सत नहीं है मुझे भी ज़ियादा ज़रूरत नहीं है बहुत ख़ुशनुमा है गुलिस्तान-ए-आलम मगर सैर करने की फ़ुर्सत नहीं है बहुत से घरों में ख़ज़ाने हैं मदफ़ूँ नहीं है तो गंज-ए-क़नाअत नहीं है कहाँ तक न बेहोश-ओ-बे-ख़ुद करेगी मय-ए-वस्ल है कोई शर्बत नहीं है ख़यालात में अपने हूँ ग़र्क़ वाइज़ मुझे कहने सुनने की फ़ुर्सत नहीं है दिखाते नहीं शर्म से रू-ए-रौशन कोई कामयाबी की सूरत नहीं है तज़लज़ुल में किस वास्ते है ज़माना शब-ए-हिज्र है ये क़यामत नहीं है कहाँ ऐ परी तू कहाँ हूर-ए-जन्नत तिरी उस की आपस में निस्बत नहीं है मिरी क़ुमरियों के सिवा कौन इंसाँ ये शमशाद है इस की क़ामत नहीं है वो उठ्ठे तो लाखों ही फ़ित्ने उठेंगे वो क़ामत भी कम-अज़-क़यामत नहीं है न क्यूँ दिल लगे याँ वो है और ख़ल्वत ये हूरा नहीं है ये जन्नत नहीं है जफ़ाएँ न कीजे न कीजे न कीजे तहम्मुल की अब मुझ को ताक़त नहीं है तलातुम में मसरूफ़ है क़तरा क़तरा कोई शय यहाँ बे-हक़ीक़त नहीं है जहाँ तक बने तुम से बे-दाद कर लो अगर आने वाली क़यामत नहीं है लरज़ता है क्यूँ डर से ऐ जिस्म-ए-लाग़र ये धड़का है दिल का क़यामत नहीं है हसीनों की चाहत हसीनों की उल्फ़त मुसीबत भी है और मुसीबत नहीं है तुम्हें आशिक़ और मुझ को माशूक़ लाखों यहाँ आदमिय्यों की क़िल्लत नहीं है सँभल कर ज़रा नाज़-ओ-अग़माज़ कीजे हसीनों की दुनिया में क़िल्लत नहीं है ज़माने में होने को सब कुछ है 'परवीं' हमें क्या उमीद-ए-शफ़ाअत नहीं है