किसी की ज़ुल्फ़ किसी के लबों को चाहा था फ़रेब देती हुई सूरतों को चाहा था है उस के दिल में भी इक आइना सा टूटा हुआ और उस को याद है किन पत्थरों को चाहा था वो बारिशें वो हवाएँ वो बादलों के हुजूम किसी के प्यार में सब मौसमों को चाहा था उदास करते हुए रास्तों ने पूछा है कहाँ गए हैं वो जिन दोस्तों को चाहा था ख़ुद अपने हाल पे हम दोनों हंस पड़े 'फ़ैसल' कि हम ने अपने सिवा दूसरों को चाहा था