किसी मिस्कीन का घर खुलता है या कोई ज़ख़्म-ए-नज़र खुलता है देखना है कि तिलिस्म-ए-हस्ती किस से खुलता है अगर खुलता है दाव पर दैर-ओ-हरम दोनों हैं देखिए कौन सा घर खुलता है फूल देखा है कि देखा है चमन हुस्न से हुस्न-ए-नज़र खुलता है मय-कशों का ये तुलूअ' और ग़ुरूब मय-कदा शाम-ओ-सहर खुलता है छोटी पड़ती है अना की चादर पाँव ढकता हूँ तो सर खुलता है बंद कर लेता हूँ आँखें 'ताबिश' बाब-ए-नज़्ज़ारा मगर खुलता है