किसी नज़र में समाउँ वो वलवला भी दे निखार बख़्शा है तू ने तो आईना भी दे तमाम लफ़्ज़ ही ख़ामोश मस्लहत के शिकार ज़बान दी है तो कहने का हौसला भी दे गुमान-ओ-वहम के माबैन थक के बैठ गया कहाँ तलाश करूँ कुछ अता-पता भी दे नफ़स नफ़स की अज़िय्यत से बात क्या बनती मिरे अज़ीज़ मुझे ज़ख़्म-ए-जाँ-फ़ज़ा भी दे चराग़ ऐसे अँधेरों में साथ दें कब तक सफ़र ही शर्त अगर है तो रास्ता भी दे मिरा ख़ुलूस तिरे मक्र-ओ-फ़न से हार गया कहाँ अज़ाब-ए-मुकर्रर मुझे हटा भी दे