किसी से प्यार नहीं सिर्फ़ प्यार जैसा है ख़िज़ाँ के दौर में मौसम बहार जैसा है ज़रूर क़ाफ़िला कोई यहाँ से गुज़रा है तमाम राह में गर्द-ओ-ग़ुबार जैसा है तुम्हारे प्यार का जादू अभी नहीं टूटा न जाने किस लिए इक ए'तिबार जैसा है पड़ी है सब को यहाँ आबरू बचाने की हर एक चेहरा यहाँ क़र्ज़-दार जैसा है शनाख़्त कम हुई जाती है आदमिय्यत की हर एक ज़ह्न पे गर्द-ओ-ग़ुबार जैसा है ये वक़्त वो है कि अपने दयार में 'ताबाँ' हर एक शख़्स ग़रीब-उद-दयार जैसा है