मआनी-ओ-लफ़्ज़ की दूकान कहाँ और एहसास की ज़बान कहाँ आप और मेरे घर मआ'ज़-अल्लाह इस ज़मीं पर ये आसमान कहाँ मैं बराबर तलाश करता हूँ हैं ज़बानों में बे-ज़बान कहाँ नाव तूफ़ान पार कर जाती हाए टूटे हैं बादबान कहाँ अब ख़ुशी भी ख़ुशी नहीं देती आ गई उम्र की ढलान कहाँ जो सरापा ख़ुलूस थे 'ताबाँ' आज-कल ऐसे मेहरबान कहाँ