कितने बोसीदा हैं हालात मुसलमानों के दिल दुखाते हैं यहाँ फ़ैसले ऐवानों के ओढ़ना और बिछौना हुआ दौलत उन का बाइ'स-ए-शर्म यहाँ काम हैं सुलतानों के ये भी महबूब की यादों में मगन हों शायद शैख़ जी आप क्यों दुश्मन हुए दीवानों के साहब-ए-फ़िक्र मदद-गार मुजाहिद दरवेश अब तो लगता है ये किरदार हैं अफ़्सानों के काटना मारना इंसान का शेवा तो नहीं छोड़ दो तौर तरीक़े हैं ये हैवानों के बस ज़रा सी ये ग़रीबी है सनम टल जाए चाक सी लेंगे सनम अपने गरेबानों के हम तो गुफ़्तार के ग़ाज़ी हैं यहाँ सब 'अंजुम' अम्न के नाम पे भागे हुए मैदानों के