नज़ारे के क़ाबिल नज़र हो तो ले नज़र को ख़ुद अपनी ख़बर हो तो ले अंधेरे उजाले गुज़र हो तो ले शब-ए-तीरा-सामाँ बसर हो तो ले अभी ना-रसाई पे क्यों गुफ़्तुगू दुआओं में पैदा असर हो तो ले नज़र वासिल-ए-नूर हो जाएगी सज़ा-वार-ए-ख़्वाब-ए-सहर हो तो ले नज़ारे का इम्काँ भी मुश्किल नहीं शुऊर-ए-नज़र मो'तबर हो तो ले बहर-कैफ़ दिल दिल से मिल जाएगा नज़र के मुक़ाबिल नज़र हो तो ले चले आएँगे लोग पुर्सिश को भी ज़रा हाल बे-हाल-तर हो तो ले तजस्सुस की राहें भी खुल जाएँगी जुनूँ अक़्ल का राहबर हो तो ले मोहब्बत के क़ाबिल भी होंगे 'रिशी' दयार-ए-वफ़ा से गुज़र हो तो ले