कितनी सच्चाई किस ख़बर में है ये तो अख़बार की नज़र में है घर में रहना तुम्हें नहीं आता वर्ना सारा सुकून घर में है आसमाँ एक सा है सब के लिए फ़र्क़ तेरी मिरी नज़र में है ज़हर इतना तो साँप में भी नहीं ज़हर जितना तुम्हारे डर में है हर क़दम पर भले हों मय-ख़ाने एक मस्जिद भी रहगुज़र में है मैं जो चाहूँ तो फूँक दूँ दुनिया आग इतनी मिरे जिगर में है मेरी ख़्वाहिश है चाँद छूने की योजना आज भी अधर में है