कितनी तासीर है गुलाबों में तुम चले आए हो ख़यालों में बाद मुद्दत के तुम को जब देखा ज़हन उलझा कई सवालों में रेत ही हासिल-ए-तमन्ना थी और कुछ भी न था सराबों में बेल जैसे शजर से लिपटी हो यूँ बसी है वो मेरे ख़्वाबों में ये मोहब्बत के ही करिश्मे हैं रास्ते बन गए चटानों में मुद्दतों से तलाश जारी थी मिल गए तुम मुझे किताबों में