किया गिर्दाब में जब भी ख़ुदा पर आसरा हम ने बजाए नाख़ुदा पाया है दिल को नाख़ुदा हम ने चमन में गुल में ग़ुंचे में शफ़क़ में मेहर-ओ-अंजुम में तुम्हीं को जल्वा-गर देखा ज़मीं ता-आसमाँ हम ने कुछ इस सूरत से उस जान-ए-गुलिस्ताँ ने नज़र फेरी ज़माने भर की फिर बदली हुई देखी हवा हम ने फ़रिश्तों ने भी जब रोज़-ए-अज़ल जुरअत न की हमदम कमाल-ए-इश्क़ का बार-ए-गराँ सर पर लिया हम ने बनीं तीर-ए-मलामत इश्क़ की ख़ुद्दारियाँ आ कर उठाना भी कभी चाहा अगर दस्त-ए-दुआ' हम ने मुसल्लम हो चुकी जब हुस्न की मा'सूमियत 'जौहर' किया हम ने जो उल्फ़त में किया अच्छा बुरा हम ने