न पूछो दिल को ले कर मुद्दआ' क्या तक़ाज़ा-ए-निगाह-ए-नाज़ था क्या नहीं फ़ित्ना-बदामाँ हर अदा क्या निगाह-ए-नाज़ ही है फ़ित्ना-ए-ज़ा क्या किसी के वस्ल से बेहतर है फ़ुर्क़त अगर हसरत नहीं तो फिर रहा क्या अयाँ है मेरी बद-हाली से सब कुछ बताऊँ और क़िस्मत का लिखा क्या तुम्हारे साथ लुत्फ़-ए-ज़िंदगी था जिया कोई अगर यूँ तो जिया क्या बहुत मचले थे दिल लेने की ख़ातिर न जाने मेरा दिल ले कर किया क्या हुए 'जौहर' सभी अपने पराए सुकून-ए-जान-ओ-दिल क्या दिलरुबा क्या