कू-ए-जानाँ में नहीं कोई गुज़र की सूरत दिल उड़ा फिरता है टूटे हुए पर की सूरत हम तो मंज़िल के तलबगार थे लेकिन मंज़िल आगे बढ़ती ही गई राहगुज़र की सूरत वो रहें सामने मेरे तो तसल्ली वर्ना दिल भी कम्बख़्त भटकता है नज़र की सूरत रूह अफ़्सुर्दा परेशान ख़यालात में गुम ऐसी पहले कभी देखी थी बशर की सूरत मेरी क़िस्मत में मोहब्बत ने यही लिक्खा है दर्द भी दिल में रहे ज़ख़्म-ए-जिगर की सूरत बैठ जाएँ किसी गोशे में सिमट कर ऐ दोस्त कौन गर्दिश में रहे शम्स-ओ-क़मर की सूरत वो गए घर से तो फिर हम ने भी घर को छोड़ा हम से देखी गई दीवार न दर की सूरत चंद आँसू ही मिरे दिल पे 'फ़लक' गिर जाएँ आतिश-ए-ग़म से सुलगता है शरर की सूरत