क्या कहें क्यूँकर हुआ तूफ़ान में पैदा क़फ़स मौज जब बल खा के उट्ठी बन गया दरिया क़फ़स ज़िंदगी ग़म का बदल है आरज़ूएँ यास का आसमाँ सय्याद हम क़ैदी हैं और दुनिया क़फ़स दिल के हक़ में सीना ज़िंदाँ आरज़ू के हक़ में दिल सैकड़ों देखे हैं लेकिन ये नया देखा क़फ़स दिन असीरी के ब-हर-सूरत गुज़ारे जाएँगे एक क़ैदी के लिए है क्या बुरा अच्छा क़फ़स कोई भी दीवार सद्द-ए-राह हो सकती नहीं तोल बैठे पर तो फिर सय्याद क्या कैसा क़फ़स अपना घर फिर अपना घर है अपने घर की बात क्या ग़ैर के गुलशन से सौ दर्जा भला अपना क़फ़स ऐ 'फ़लक' आई यहाँ भी मुझ को याद-ए-आशियाँ बर्क़ तू गर्दूं पे चमकी जगमगा उट्ठा क़फ़स