कोई आहट कोई सरगोशी सदा कुछ भी नहीं घर में इक बेहिस ख़मोशी के सिवा कुछ भी नहीं नाम इक नायाब सा लिखा था वो भी मिट गया अब हथेली पर लकीरों के सिवा कुछ भी नहीं बे-छुए इक लम्स का एहसास इक ख़ामोश बात उस के मेरे बीच आख़िर था भी क्या कुछ भी नहीं दोस्ती कैसी वफ़ा कैसी तकल्लुफ़ बरतरफ़ आप कुछ भी हों मगर क्या दूसरा कुछ भी नहीं देखना ये है कि मिलने किस से पहले कौन आए मेरे घर से उस के घर का फ़ासला कुछ भी नहीं