ताज माँगूँ न ख़ज़ाना चाहिए सो सकूँ जिस पर बिछौना चाहिए शे'र कहने में बुराई कुछ नहीं बस नया अंदाज़ होना चाहिए बात ऐसी हो कि दिल को चीर दे सुन के ज़ालिम को भी रोना चाहिए घर के बाहर खेलते थे सब कभी अब तो घर में एक कोना चाहिए किस तरह 'शमशेर' सब से ये कहे रिज़्क़ जितना दिल भी उतना चाहिए