कोई आहट न कोई डगर सामने एक अक्स-ए-सफ़र सर-बसर सामने आसमाँ पर लहू गुल बिखरता हुआ और उभरता हुआ मेरा सर सामने वो अकेला हज़ारों से लड़ता रहा जंग होती रही रात भर सामने नन्ही-मुन्नी दुआओं का हासिल है क्या लुट गया सारा रख़्त-ए-सफ़र सामने टूट कर सारे मंज़र बिखरने लगे बे-तहाशा अड़े बाम-ओ-दर सामने कश्तियाँ टूट कर सब किनारे लगीं कैसे आसेब का है सफ़र सामने कोई अवतार तो इस ज़मीं पर मिले आए कोई तो पैग़ाम्बर सामने फ़ासला मेरे क़दमों में मंज़िल का था वर्ना रहता कहाँ ये सफ़र सामने टुकड़े टुकड़े बदन रक़्स करता हुआ इक ज़रा सा उधर बाम पर सामने इक झलक सब्ज़ मिट्टी की आँखों में बस शो'ला शो'ला शफ़क़ लम्हा भर सामने सर पे बूढ़ा गगन कब से रक्खा हुआ रक़्स-ए-शम्स-ओ-क़मर आँख भर सामने कोई मुझ में मुझे क़ैद करता हुआ फेंक कर ये लाल-ओ-गुहर सामने क्या करूँ मेरा मन था ख़लाओं में गुम वो दिखाता रहा सब हुनर सामने सीना सीना सफ़र ये तिलिस्म-ए-हुनर देख 'अजमल' है रफ़्तार भर सामने