कोई बशर मुझे ऐसा नज़र नहीं आता कि तेरे कूचे से थामे जिगर नहीं आता रफ़ीक़ वाँ कोई जाता है रहम खा के अगर तो फिर वो भूल के रस्ता इधर नहीं आता नहीं मैं क़ाबिल-ए-लुत्फ़-ओ-करम तो ऐ ज़ालिम सितम भी मुझ पे न कर रहम गर नहीं आता जमाल-ए-यार न देखा था जब तक आता था और अब तो हश्र तलक नामा-बर नहीं आता कहाँ तलक अरे बे-रहम मश्क़-ए-तीर-ए-सितम निशान-ए-गोर भी अब तो नज़र नहीं आता तरह तरह के सितम मुझ पे होते हैं ज़ालिम जलाना ग़ैर का तुझ को मगर नहीं आता मरीज़-ए-दर्द-ए-मोहब्बत का दिल न तोड़ अपने नहीं तो मुँह से न कर तू अगर नहीं आता मिलाया ख़ाक में और उस पे कहते हैं कि मुझे कुछ इम्तिहान मोहब्बत का कर नहीं आता हुआ हूँ बे-ख़ुदी-ए-इश्क़ से यहाँ तक महव कि यार सामने है और नज़र नहीं आता मसीह है पे जिलाना मिरा नहीं मंज़ूर मिरे जनाज़ा पे वो जान कर नहीं आता हुआ है हाल 'हया' का ये हिज्र में तेरे कि अब तो साँस भी दो-दो पहर नहीं आता