क्या तू ने मुझ को ऐ फ़लक-ए-फ़ित्ना-गर दिया माशूक़ इक दिया था सो अपना सा कर दिया क्या शिकवा आह-ए-गर्म-ओ-दम-ए-सर्द से करूँ जो कुछ दिया ख़ुदा ने मुझे बे-असर दिया सौ बार रो के ख़ाली किया दिल को हिज्र में शौक़-ए-विसाल-ए-यार ने सौ बार भर दिया वाँ शौक़-ए-ज़ुल्म-ओ-जौर है याँ ख़्वाहिश-ए-सितम दोनों को एक सा है ख़ुदा ने जिगर दिया लग जाए दिल को आग कि अपनी तरह मुझे बेताब-ओ-बे-तहम्मुल ओ बे-सब्र कर दिया जलता नहीं है हाए ख़ुदाया दिल-ए-रक़ीब कैसा ये तू ने है नफ़स-ए-शो'ला-वर दिया दिल ये है कोई एक बला का बना हुआ बिगड़ी जो यार से तो मुझे आगे धर दिया ऐ चश्म तू ने क़हर किया ज़ब्त कर के अश्क ज़ख़्म-ए-जिगर में और नमक ले के भर दिया कोई न जानता था जहाँ में 'हया' मुझे आशिक़ बुतों की चाह ने मशहूर कर दिया