कोई हादिसा कोई वाक़ि'आ न कहा हुआ न सुना हुआ वही चोट दिल पे लगी हुई वही दर्द तेरा दिया हुआ इसे पेश कर मिरे नामा-बर ये थकी थकी मिरी चश्म-ए-तर यही एक नामा-ए-मुख़्तसर न लिखा हुआ न पढ़ा हुआ तिरा ख़त है या कोई ज़ख़्म-ए-दिल कहीं मुंदमिल कहीं मुस्तक़िल कहीं ख़ून-ए-दिल से लिखा हुआ कहीं आँसुओं से मिटा हुआ कोई महव-ए-हुस्न-ओ-जमाल था कि कमाल-ए-शौक़-ए-विसाल था लब-ए-औज-ए-सिदरा-ए-मुंतहा न रुका हुआ न थका हुआ तिरे मदरसों में कहाँ रही वो दिल-ओ-ज़मीर की रौशनी तेरी ख़ानक़ाह से बू-ज़री का जलाल कब का हवा हुआ वही बुत-फ़रोशीं-ओ-बुत-गरी वही जुर्म-ए-शेवा-ए-आज़री वही सामरी वही साहिरी वही तूर सर पे उठा हुआ ये शरर शरर रह-ए-पुर-ख़तर ये शिकस्ता पर ये क़फ़स का डर कभी इस के दर कभी उस के दर कभी दर-ब-दर सा किया हुआ वो हिकायतें वो शिकायतें न कही हुई न सुनी हुई ये जुनूँ की आह-ए-फ़लक-रसा वो चराग़-ए-हुस्न बुझा हुआ उसे रास आ न सकी कभी सर-ए-मय-कदा तिरी बे-रुख़ी वही तेरा 'बज़्मी' वो बादा-कश न झुका हुआ न बिका हुआ