मन्नत-गुज़ार दीदा-ए-गिर्यां न था कभी ये दिल मरीज़-ए-जल्वा-ए-जानाँ न था कभी उस को भी था हुजूम-ए-तजल्ली से एहतियात मैं भी हरीस-ए-लुत्फ़-ए-चराग़ाँ न था कभी चुपके से आज वो भी तह-ए-ख़ाक सो गए जिन को ख़याल-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ न था कभी जो मो'तबर हुआ है निगाह-ए-जमाल में महव-ए-तवाफ़-ए-शम-ए-फ़रोज़ाँ न था कभी ऐ बे-चराग़ सूनी हवेली के बासियो क्या तुम को ख़ौफ़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ न था कभी क्यों कम हुआ है कूचा-ए-क़ातिल में ए'तिबार क्या मैं असीर-ए-गेसू-ए-ख़ूबाँ न था कभी नूर-ए-हिरा के फ़ैज़ से पहले तो ऐ हयात इरफ़ान-ए-ज़ात का तुझे इरफ़ाँ न था कभी सिमटा हुआ हूँ शर्म से महशर की भीड़ में दिल में ख़याल-ए-दफ़्तर-ए-इस्याँ न था कभी रक्खी मिरे ज़मीर ने आब-ए-अना की लाज मैं ज़ेर-ए-बार-ए-ख़्वाजा-ओ-सुल्ताँ न था कभी 'बज़्मी' तुम्हारे दौर की मिल्लत-फ़रोशियाँ इतना तो बे-ज़मीर मुसलमाँ न था कभी