माना कि मेरे प्यार को पत्थर पसंद था वो शख़्स क्या हुआ जो बड़ा दर्द-मंद था शहर-ए-सदा को रात किसी ने जगा दिया डूबा हुआ सा दर्द में वो किस का छंद था कैसे वो इस जहान की वुसअ'त को देखता वो आइना जो अपने ही कमरे में बंद था कासे को दर्द के न मिली चाँदनी की भीक हालाँकि मेरा चाँद बहुत दर्द-मंद था भड़की लहू की आग तो अंदर से जल गया एहसास का मकान जो बाहर से बंद था देते हैं दाद गुल तिरे आँचल को थाम कर काँटों का हौसला भी ग़ज़ब का बुलंद था जिस के गले में निस्फ़ सदी की सलीब थी उस लम्हे का तो 'राज' भी एहसानमंद था