कोई लाख तुम से ख़फ़ा रहे न किसी को ख़ुद से जुदा करो यही ज़िंदगी का उसूल है गले सब से बढ़ के मिला करो कभी राज़-ए-दिल न अयाँ करो न तो ग़ैर ही की सुना करो तुम्हें जो भी कहना है शौक़ से मिरे पास आ के कहा करो मिरे पीठ पीछे रक़ीब से करो यूँ न राज़ की बात तुम जो गिला है मुझ से अगर कोई मिरी बात मुझ से कहा करो बड़ी जाँ-फ़ज़ा है ये दोस्ती ज़रा दुश्मनी का भी लुत्फ़ लो कभी दुश्मनों से गले मिलो कभी उन के हक़ में दुआ करो भला बात कोई ये बात है कि हो दिल में कुछ तो ज़बाँ पे कुछ जो कहा करो वो किया करो जो किया करो वो कहा करो है 'ज़फ़र' ये दश्त-ए-जुनूँ मगर हर इक लम्हा काँटों का क्या गिला कभी नोक-ए-सोज़न-ए-ख़ार से फटे पैरहन भी सिया करो