कोई मेहराब से आगे आगे रौशनी ख़्वाब से आगे आगे एक दरिया का तसलसुल मुझ में एक गिर्दाब से आगे आगे रूह का तश्त सजा रक्खा है जिस्म की क़ाब से आगे आगे पीछे आवाज़ अंधेरा धड़का साया मेहराब से आगे आगे मेरा हर ख़्वाब था तह-दार बहुत ख़्वाब था ख़्वाब से आगे आगे चीख़ती फिरती है पतझड़ लेकिन नख़्ल-ए-शादाब से आगे आगे