माइल-ए-रक़्स-ए-शरर बैठे हैं कर के तूफ़ाँ पे नज़र बैठे हैं वो जो बा-दीदा-ए-तर बैठे हैं रंज-ओ-आलाम से डर बैठे हैं अब तो जल जाना ही होगा बेहतर दोस्ती शम्अ से कर बैठे हैं दर्द की रात कठिन है लेकिन ले के उम्मीद-ए-सहर बैठे हैं ग़म के तूफ़ाँ को सदफ़ में तन कर हम ब-अंदाज़-ए-गुहर बैठे हैं ज़िंदगी ढाल बने या न बने मौत से सीना-सिपर बैठे हैं